एडीडास – मोची के बेटों ने बनाया एडीडास
‘भगवान क्या है?’
देश की दूसरी सबसे बड़ी (पहली टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज) आईटी कंपनी इन्फोसिस टेक्नोलॉजिस के संस्थापक नारायण मूर्ति से एक पत्रकार ने जब यह सवाल पूछा तो वे बोले, ‘हाँ है, पर भगवान् बड़े शरमीले हैं। अवसर के रूप में वे हमसे मिलते हैं।’ फूट वियर्स व स्पोर्ट्स गुड्स के अंतरराष्ट्रीय ब्रांड एडीडास की कहानी नारायण मूर्ति के इस कथन की पुष्टि करती है। एडीडास न्यूरेंबर्ग (जर्मनी) के नजदीक स्थित एक छोटे से टाउन हरजोजेनोर्च में जनमा है। इसके जन्मदाता हैं एक साधारण मोची परिवार के दो युवक।
Adidas clothing and shoe logo designs typically feature three parallel stripes, and this same motif is incorporated into Adidas’s current official logo. For years the only symbol associated with Adidas was the trefoil (flower) logo design. The 3 leaves symbolize the Olympic spirit, linked to the three continental plates as well as the heritage and history of the brand. The “Trefoil” was adopted as the corporate logo design in 1972. In January 1996, the Three-Stripe brand mark became the worldwide Adidas corporate logo. This logo represents performance and the future of the Adidas branding identity.
गरीबी और नाखुशी से बने पहले जूते
सवा सौ साल पहले बिग डॉग शू फैक्टरी में क्रिस्टन डेसलर जूतों की सिलाई करते थे। उनकी कमाई से परिवार का जीवन-यापन संभव नहीं था, इसलिए उनकी पत्नी पाओलिन टाउन में ही एक छोटी सी लांड्री चलाती थी। इस दंपती के दो पुत्र थेङ्तएडोल्फ और रुडोल्फ, जिनके घरेलू नाम थेङ्तएडी और रूडी। दोनों भाई अच्छे खिलाड़ी थे। एडी पिता द्वारा बनाए स्पोर्ट्स शू की फिटिंग से कभी खुश नहीं हुआ। वह सोचता था कि ऐसे शू पहनकर कैसे कोई खिलाड़ी मैदान में अच्छा प्रदर्शन कर सकता है।
सन् 1920 में 20 वर्ष की उम्र में एडी ने कैनवास से अपने जूते खुद बनाए। ये शूज एडी को खेल के मैदान में अत्यंत सुविधाजनक लगे तो एडी अपने मित्रों के लिए भी शूज बनाने लगा, जिन्हें खूब पसंद किया गया। श्री मूर्ति के शब्दों में कहें तो एडी के जीवन में भगवान् अवसर का रूप धारण करके आ गए थे, अब पुरुषार्थ से उन्हें पकड़ना था और पकड़े रखना था।
साथ आए दो भाई, लांड्री बनी कर्मभूमि
एडी ने यही किया और भाई रूडी के साथ स्पोर्ट्स शूज बनाने का कारखाना लगाने का निर्णय लिया, पर संसाधन नहीं थे। दोनों भाइयों ने माँ की लांड्री को अपना वर्कशॉप बनाया, जहाँ कभी-कभी बिजली न मिलने पर स्टेशनरी साइकिल के पैडल पॉवर पर निर्भर थे। बहुत जल्दी उनके बनाए शूज लोकप्रिय हो गए।
एडी और रूडी ने थोड़ा पैसा कमाया तो 1 जुलाई, 1924 को उन्होंने एक कंपनी डोसलर ब्रदर्स (ग्रेब्रुडर डोसलर ओएचजी) का गठन किया। सन् 1928 में समेस्टर्डम ओलंपिक में पहली बार खिलाडि़यों ने डोसलर ब्रदर्स के शूज पहने। सन् 1930 तक एडी व रूडी ग्यारह खेलों के लिए अलग-अलग डिजाइन के जूते बनाने लगे। सन् 1936 में बर्लिन में आयोजित समर ओलंपिक में जेस्सी ओवेंस डोसलर शू पहनकर मैदान में खेला। एडोल्फ हिटलर की उपस्थिति में खेले गए इस टूर्नामेंट में जेस्सी ने चार स्वर्ण पदक हासिल किए तो एडी की खुशी देखते ही बनती थी। इसके बाद डोसलर शूज की माँग बढ़ गई। द्वितीय विश्वयुद्ध के पहले एडी व रूडी ने 28 लाख जूते बेचने का कीर्तिमान बनाया; पर युद्ध ने सारी मेहनत पर पानी फेर दिया। दुनिया को युद्ध के प्रभाव से मुक्त होने में दस साल लग गए।
अनबन से जनमी पूमा
सन् 1947 में एडी व रूडी ने 50 कारीगरों के साथ कारोबार को पुनर्जीवित किया, पर इसी साल दोनों भाइयों में अनबन हो गई। एडी व रूडी नाजी पार्टी के सदस्य थे। रूडी पार्टी में ज्यादा सक्रिय थे। उन्हें अमेरिकन फौज ने गिरफ्तार किया तो इसके लिए रूडी ने एडी को दोषी माना और भाई से नाता तोड़कर अपनी अलग कंपनी ‘पूमा’ स्थापित की। अपने निकनेम एडी के साद डेसलर के शुरुआती तीन शब्द जोड़कर रुडोल्फ ‘एडीडास’ के नाम से जूते बनाने लगा।
एक साल बाद एडी ने ट्रैफाइल (त्रिपर्णचाप या तिपहिया) को तीन पट्टियों की शक्ल में अपने प्रतीक चिह्न (लोगो)* बनाया। कहते हैं कि पुरातन ग्रीस में आयोजित होनेवाले स्पोर्ट्स फेस्टिवल के विजेताओं को दिए जानेवाले ट्रैफाइल पदक से प्रेरित हैङ्तएडीडास की यह विश्व-प्रसिद्ध पहचान। यह पदक ओलंपिक खेल भावना और विजेता होने की चाह को दरशाता है। एडी ने भी सारा जीवन इस भावना के साथ जिया था।
* सन् 1967 में एडी डेसलर ने अपनी कंपनी के लिए तीन पट्टियों का प्रतीक चिह्न स्वयं तैयार किया था। लोगो की पट्टियाँ पहाड़ का प्रतिनिधित्व करती हैं। जो ऊँचाई और लक्ष्य की ओर संकेत करती है। सन् 1997 में एडीडास के क्रिएटिव डायरेक्टर पीटर मुरे ने इस प्रतीक चिह्न की रीइंजीनियरिंग की। सालोमन के अधिग्रहण के बाद उनके प्रतीक चिह्न से लाल रंग लिया गया। डायमंड लुक के तीन चिह्न जोड़े गए, जिसके दो मोड़ विजय का प्रतिनिधित्व करते हैं। सन् 2005 में नया वर्ल्ड मार्क लोगो अपनाया गया, जो सरल है और मार्केट लीडरशिप का आत्मविश्वास दरशाता है।
खेल बढ़े और जूते चले
सन् 1954 में आयोजित सॉसर वर्ल्ड कप में जर्मन टीम एडीडास के स्क्रू-इन-स्टड्स शूज पहनकर मैदान में उतरी थी और उसने सांसर हंगरी को परास्त किया। इसके बाद तो एडी ट्रेनिंग शूज के गॉड फादर बन गए। द्वितीय विश्वयुद्ध की उदासी व हताशा को दूर करने में स्पोर्ट्स ने अहम भूमिका निभाई है। स्पोर्ट् फेस्टिवल्स व ओलंपिक विश्वयुद्ध के बाद ही सारी दुनिया में लोकप्रिय हुए हैं। एडी ने इस अवसर का सूझ-बूझ के साथ दोहन किया और शूज सहित अपने अन्य स्पोर्ट्स उत्पादों की गुणवत्ता बढ़ाई, गुणवत्तायुक्त उत्पाद बनाने के लिए नई-नई तकनीक अपनाई। एडी पहले उद्यमी भी हैं, जिन्होंने एडीडास ब्रांड के प्रमोशन के लिए स्टार खिलाडि़यों को अनुबंधित किया। दुनिया के अपने जमाने के कई नामी एथलीट्स जैसे जेस्सी ओवेंस, मोहम्मद अली, सेफ हरबर्जर, फ्रॉज बिकेनबर ने एडीडास उत्पादों को प्रमोट किया। भारतीय टेनिस स्टार सानिया मिर्जा भी एडीडास की ब्रांड एंबेसडर रहीं।
प्रचार की धूम, पेटेंट का फंडा
एडी ने आक्रामक प्रचार-प्रसार पर भी उदारता से खर्च किया। सन् 1972 में हुई फाइट ऑफ सेंचुरी के दोनों योद्धा मोहम्मद अली और जो फ्रेजियर एडीडास के शूज पहनकर ही रिंग में उतरे थे। इसी साल एडीडास म्यूनिख ओलंपिक का अधिकृत सप्लायर बना। एडीडास पहला स्पोर्ट्स ब्रांड भी है, जिसने नॉन एथलीट्स हिप-हॉप ग्रुप रन-डीएसी (संगीत कलाकारों का ग्रुप) को भी प्रमोट किया। इस ग्रुप के एक अलबम ‘माई एडीडास’ ने ’80 के दशक में खूब धूम मचाई।
मार्केटिंग गुरु कहते हैं कि एडीडास के प्रतिद्वंद्वी नाइकी के लिए, जो माइकल जोर्डन ने किया, वही करिश्मा एडीडास के लिए एन-डीएमसी ने दोहराया। अमेरिकन गायक व गीत लेखक मिस्सी इलियट भी एडीडास के ब्रांड एंबेसडर रहे। सन् 1978 में 78 वर्ष की उम्र में एडी का जब निधन हुआ तो उनके पास स्पोर्ट्स शूज व अन्य स्पोर्ट्स उपकरणों के 700 से ज्यादा पेटेंट्स थे। वे पहले गैर-अमेरिकन उद्योगपति भी बन गए थे, जिनके उत्पाद अमेरिकन मार्केट में भी स्थापित हो चुके थे।
तारणहार मिला, ब्रांड बनी मार्केट लीडर
एडी के निधन के बाद उनकी पत्नी कैथ डेसलर ने कारोबार सँभाला। 6 साल बाद उनका निधन हुआ तो पुत्र होर्स्ट डेसलर एडीडास के सर्वेसर्वा बने, पर सन् 1987 में मात्र 51 वर्ष की उम्र में उनका भी निधन हो गया। इसके बाद कंपनी ने दुर्दिनों का सामना किया, जिससे फ्रेंच उद्योगपति बर्नार्ड टेपी ने उबारा। सन् 1989 में एडीडास एक कॉर्पोरेशन में बदला गया और एक बार फिर अपनी जड़ों को लौटते हुए उच्च गुणवत्ता के स्पोर्ट्स शूज बनाने लगा। सन् 1931 में एडीडास स्पोर्ट्स इक्विपमेंट्स, फंक्शनल शूज व एपेरल्स मार्केट में आए। इसके बाद से एडीडास स्ट्रीट वॉल के साथ युवाओं पर फोकस कर रहा है। सन् 1997 में एडीडास व सोलोमन ने हाथ मिलाए और एडीडास-सोलोमन की स्थापना हुई।
जनवरी 2006 में रिबोक इंटरनेशनल को अधिग्रहीत करके एडीडास ग्लोबल फुटवियर मार्केट का लीडर बन गया। एडीडास डिआड्रेंट्स, परफ्यूम, आफ्टर शेव लोशन जैसे कई अन्य उत्पाद भी बनाता है। एडीडास का मुख्यालय जर्मनी में है, पर कई देशों में इसका कारोबार फैला हुआ है। फुटवियर मार्केट में नई क्रांति का जनक है एडीडास। इनमें उल्लेखनीय है सन् 2005 में कंपनी द्वारा लॉञ्च किया गया एडीडास वन, जिसमें माइक्रोप्रोसेसर उपयोग किया गया है। सारी दुनिया में पहले इंटेलीजेंट शूज के नाम से मशहूर एडीडास वन में 100 घंटे चलनेवाली बैटरी लगी है, जो मौसम व पर्यावरण के अनुकूल शूज की कुशनिंग (तले) को स्वयं एडजस्ट करती है।
ब्रांड एंबेसडर की परंपरा
एडीडास ने स्टार खिलाडि़यों को ब्रांड एंबेसडर बनाने की परंपरा जारी रखी है। कई अन्य सेलिब्रिटीज के अलावा फ्री-किक के लिए सारी दुनिया में मशहूर स्टार फुटबॉल खिलाड़ी डेविड बेकहम को एडीडास ने 4 मिलियन पाउंड सालाना शुल्क पर अपना प्रोडक्ट्स प्रमोटर नियुक्त किया है। मार्केट विश्लेषकों के अनुसार, माइकल जोर्डन की तरह बेकहम ‘हॉट मार्केट मशीन’ है, जिन्होंने अपना सिग्नेचर ट्रेडमार्क ‘फ्री-किक’ एडीडास को कलेक्शन उत्पादों के लिए उपलब्ध करवाया है।
भारत में जमे 100 ठिकाने
सन् 1996 में स्थापित एडीडास इंडिया मार्केटिंग प्रा. लिमिटेड भारत में एडीडास उत्पाद उपलब्ध करवाती है। सारे देश में इसके सौ से ज्यादा एक्सक्लूसिव स्टोर्स हैं। देश के महँगे फुटवियर्स मार्केट में एडीडास, लेवीज और रिबोक का वर्चस्व है; पर इस मार्केट का मास्टर ब्रांड है एडीडास।
Pinning it Up !
Wondering how to pay a fifteen-dollar debt American mechanic Walter Hunt unconsciously twisted a piece of wire into one of the greatest inventions of all time – the Safety Pin.
Truly, the brightest ideas come at the most unexpected times. Don’t they ?
DISCLAIMER:
THE VIEWS AND OPINIONS EXPRESSED IN THIS ARTICLE ARE THOSE OF THE AUTHOR AND DO NOT REFLECT THE VIEWS OF SPEAKIN, ITS MANAGEMENT OR AFFILIATES. SPEAKIN MAKES NO REPRESENTATION AS TO ACCURACY, COMPLETENESS, CORRECTNESS, SUITABILITY OR VALIDITY OF ANY INFORMATION ON THIS ARTICLE AND WILL NOT BE LIABLE FOR ANY ERRORS, OMISSIONS OR DELAYS IN THIS INFORMATION OR DAMAGES ARISING FROM ITS DISPLAY OR USE.