बाजार में एक ठंडी शाम

दिसंबर के अंतिम दिनों में एक दिन शाम को आसमान पर घने बादल छा गए और बूँदाबाँदी शुरू हो गई थी। युवा कमल लंढौर में एक केमिस्ट की दुकान के सामने खड़ा थर्मामीटर की तरफ देख रहा था, जिसका पारा सुबह से काफी गिर चुका था।
कमल ने सहमति में सिर हिलाया। बूँदाबाँदी और उसके गरम कोट तथा स्कार्फ के बावजूद ठंड हर मिनट ज्यादा तेज होती जा रही थी।
उसने केमिस्ट से ‘शुभ रात्रि’ कहा और नीचे बाजार में से होकर दूसरी तरफ जाने वाली सड़क पकड़कर तेज गति से चल दिया। बाजार में कई कश्मीरी और तिब्बती दुकानें खुली थीं। तिब्बती पीतल के बरतन व चित्रित स्क्रॉल बेचते थे और कश्मीरी गलीचे एवं कलाकृतियाँ बेचते थे।
कमल उन दुकानों के पास से गुजर ही रहा था कि जावेद खान ने उसे पुकार लिया।
‘बाहर मौसम बहुत खराब है। बाहर रहना ठीक नहीं।’ वृद्ध कश्मीरी दुकानदार ने बुलाया, ‘शायद बारिश आधा घंटे में रुक जाएगी। तब तक अंदर आ जाओ और अपने को गरम करने के लिए अँगीठी के पास बैठ जाओ।’
कमल ने अंदर झाँका और देखा कि वहाँ पहले से कई लड़के व लड़कियाँ आग के चारों तरफ बैठे थे। उनमें से चुटियावाली एक काली लड़की शशि को उसने पहचान लिया था, जो उसकी सहपाठी थी और उसका पेट कुछ बड़ा था। विजय, जो स्कूल जाने के लिए बहुत छोटा था, लेकिन जावेद खान की दुकान पर आने के लिए पर्याप्त रूप से बड़ा था।
‘मैं इन युवा मित्रों को देश के मेरे वाले भाग की कुछ कहानियाँ सुना रहा हूँ।’ जावेद खान ने कहा, ‘शायद वे तुम्हें भी पसंद आएँगी।’
कमल ने निमंत्रण स्वीकार कर लिया, क्योंकि उसे जावेद खान की कहानियाँ अच्छी लगती थीं और इसलिए भी कि मौसम अप्रिय था और उसका घर कम-से-कम एक मील दूर था।
‘अगर तुम्हारे हाथ ठंडे हो रहे हैं तो मैं यहाँ दस्ताने भी बेचता हूँ।’ जावेद खान ने कहा, जो हमेशा अपने अतिथियों को कुछ-न-कुछ बेचने के लिए तैयार रहता था, ‘ये कश्मीर में बनते हैं, जहाँ तुम जानते हो, यहाँ से भी कहीं ज्यादा ठंड पड़ती है।’ उसने एक बंडल में से दस्तानों का एक जोड़ा निकाला और कमल को यह कहते हुए दे दिया, ‘इसके पैसे तुम अपनी सहूलियत से दे देना।’ वह जानता था कि कमल के पिता पर, जो पुस्तकें लिखता था, भरोसा किया जा सकता था, भले ही वह भुगतान करने में कभी-कभी कुछ विलंब कर देता था।
जावेद खान लंढौर के बच्चों के बीच बहुत लोकप्रिय था, चाहे वे अमीरों के बच्चे हों या गरीबों के। ठंडी शामों को वे उसकी कहानियाँ सुनने के लिए उसकी चमकती अँगीठी के चारों तरफ इकट्ठा हो जाते थे। कमल, जो मोल-भाव करने के लिए हमेशा तैयार रहता था, ने पूछा, ‘जावेद खान, ये दस्ताने कितने के हैं?’
‘कीमत भी बता देंगे भुगतान के समय।’ चतुर वृद्ध ने जवाब दिया।
‘दस रुपए से ज्यादा नहीं दूँगा।’ कमल ने कहा।
जावेद खान ने बनावटी निराशा में अपने हाथ छोड़ दिए और कमल जान गया कि सौदा पट गया था। उसने दस्ताने अपनी जेब में रखे और नन्हे विजय को अपने घुटनों पर बिठाते हुए हाथ गरम करने के लिए आग की तरफ झुक गया।
शशि, जिसकी बड़ी-बड़ी आँखें आग की रोशनी में चमक रही थीं, ने पूछा, ‘जावेद खान, आपकी उस कहानी का क्या हुआ?’
‘शशि, इस पल एक कहानी मेरे होंठों पर आ रही है; लेकिन अगर विजय चुपचाप बैठेगा तभी मैं शुरू करूँगा।’
तुरंत ही आग के चारों तरफ गोला बनाकर इकट्ठे हुए सारे बच्चे शांत हो गए। जावेद खान ने अपने हुक्के का एक कश लिया और अपनी कहानी आरंभ की।
जावेद खान ने कहा—एक बार गरमियों में हमारे गाँव में एक ऐसा आदमी आया, जिसे कोई भी चीज खुश नहीं कर सकती थी। वह आराम करने के लिए अखरोट के एक पेड़ के नीचे बैठ गया। यह पेड़ हर साल खूब फल देता था और अपने मालिक के लिए यह बहुत ही कीमती था। पेड़ के आस-पास की जमीन भी कीमती थी और उसमें कद्दू के पौधे के बीज बोए हुए थे। जब वह आदमी, जिसे कोई खुश नहीं कर सकता, बैठ गया, उसने देखा कि उसके पास में ही एक अधपका कद्दू पल रहा था।
उसने अखरोट के पेड़ को देखा, फिर कद्दू की बेल को देखा।
‘ओ, अल्लाह!’ वह बोला, ‘तेरे तरीके भी कितने अजीब हैं! इतने बड़े पेड़ को तो तूने छोटे-छोटे फल दिए हैं और जमीन पर पड़ी कद्दू की इस बेल को इसकी शक्ति की तुलना में इतना बड़ा फल दे दिया! क्या यह ज्यादा समझदारी नहीं होती कि इसका उलटा किया जाता?’
तभी ऊपर डाली से एक अखरोट टूटकर उस बड़बड़ा रहे आदमी के नंगे सिर पर पड़ा और वह अचानक चौंक गया और अपने सिर को मलने लगा।
‘हाय अल्लाह!’ वह विस्मय से बोला, ‘अब मुझे आपकी बुद्धिमानी दिखाई दे रही है। आखिरकार आप ही सही हैं। अगर अखरोट के पेड़ पर कद्दू उगाया गया होता और इतनी ऊँचाई से वह मेरे सिर पर गिरा होता तो मैं तो मर ही गया होता! अब मुझे आपकी बुद्धिमानी, महानता और शक्ति नजर आ रही है।’
कमल दबी हँसी हँसा। दूसरे बच्चे उस आदमी, जिसे कोई खुश नहीं कर सकता, की हार के विचार से मुसकरा रहे थे।
कमल ने पूछा, ‘जावेद खान, आपको यह किस्सा किसने सुनाया था? क्या यह लिखा हुआ है और किसी किताब में है?’
‘मुझे पता नहीं, हुजूर। बेहतर होगा कि तुम अपने पिताजी से पूछना। अब देर हो रही है, फिर आना; क्योंकि मेरे पास तुम्हें और मेरे नन्हे मित्रों को सुनाने के लिए और बहुत सी कहानियाँ हैं। अब बर्फ गिरनी शुरू हो, इससे पहले घर दौड़ जाओ।’
‘शुभ रात्रि, जावेद खान।’ अपने नए दस्ताने पहनते हुए और अपना स्कार्फ नन्हे विजय के चारों तरफ लपेटते हुए कमल ने कहा, ‘अच्छा होगा कि मैं विजय को उसके घर छोड़ता हुआ जाऊँ।’
वह जाने के लिए उठा और ऐसा ही दूसरों ने भी किया। शशि बाईं तरफ वाली सड़क पर गई और विजय को कंधे पर बिठाए कमल तेजी से बाजार की घुमावदार सड़क पर चल दिया।