फेयर ऐंड लवली – गोरेपन का राज फेयर ऐंड लवली
किसे नहीं चाहिए गोरापन और निखरी त्वचा? खूबसूरत दिखने के लिए लोग लाखों जतन करते हैं! एक नशे और जुनून की हद तक पीड़ा सहते हैं, भूखे रहते हैं, संकल्प करते हैं और अपने कायाकल्प के सपने देखते हुए दूसरों से खुद की तुलना करते हैं! पॉप सिंगर माइकल जैक्सन को याद करें। असमय दिवंगत हुए इस महान् गायक ने गोरा और सुंदर बनने के लिए अपनी पूरी चमड़ी तक बदलवा ली थी। जैक्सन को गोरा बनने की सनक 1970 के दशक में उस समय चढ़ी, जब उन्होंने देश-विदेश में नस्लीय भेदभाव देखा। उनकी इस सनक को बाजार ने एक बड़े मौके के रूप में लपका। बाजार की इन्हीं ताकतों में से एक थी मशहूर एफ.एम.सी.जी. कंपनी हिंदुस्तान लीवर लिमिटेड (एच.एल.एल.)। सन् 1888 से भारत के बाजार और करोड़ों लोगों की लाइफ स्टाइल का अहम हिस्सा बनी इस कंपनी को अब हिंदुस्तान यूनीलीवर के नाम से जाना जाता है।
The beautiful logo of Fair & Lovely says- a woman’s passion for beauty is universal and catering to this strong need is the world’s largest selling fairness cream. Fair & Lovely (FAL) was. Launched 35 years’ back, the product revolutionized the skincare market, being the first fairness cream in India & World’s No. 1.There is a trust factor that has been handed down over the decades, and brand has played an important role in making Fair & Lovely the brand it is today.
आपातकाल में टूटी साँवलेपन की जंजीरें
सन् 1975 में जब भारत आपातकाल की जंजीरों में जकड़ा था, उसी साल हिंदुस्तान लीवर की प्रयोगशालाओं में एक अहम कोशिश जारी थी, साँवलेपन की जंजीरों को तोड़ने की। हालाँकि साँवलापन कोई अभिशाप नहीं है। ब्लैक ब्यूटी का अपना अद्भुत सम्मोहन है, यानी साँवला होना कोई शर्म की बात भी नहीं और न ऐसा कोई कारण ही, जिसके लिए साँवले व्यक्ति खुद को हीन या छोटा समझें। खैर, 1975 में एच.एल.एल. के वैज्ञानिकों की कोशिशें रंग लाईं। उन्होंने विटामिन बी-3 (नियासिनामाइड) और सूरज की पराबैंगनी किरणों से सुरक्षा देनेवाली सनस्क्रीन लोशन को मिलाकर नया फॉर्मूला ईजाद किया। इसके बाद कंपनी ने दावा किया कि उनका फॉर्मूला मानव शरीर की कोशिकाओं में मैलेनिन नामक उस पिगमेंट (रंजक) पर नियंत्रण कर सकता है, जिसके कारण त्वचा का रंग साँवला या काला पड़ जाता है। गोरे लोगों में इस पिगमेंट की मात्रा बहुत कम होती है और काले लोगों में बहुत ज्यादा। दिलचस्प बात है कि 1975 के इसी साल में बॉलीवुड की साँवली-सलोनी एक्ट्रेस काजोल भी पैदा हुई थीं और गोरी-चिट्टी प्रीति जिंटा भी। बहरहाल, एक बार फॉर्मूला मिल जाने के बाद करीब तीन साल लगे और सामने आया एक ऐसा ब्रांड, जिसका आज तक कोई सानी नहीं है।
42 दिन में गोरा बनाने का दावा
वर्ष 1975 से 1978 के दौरान अवतार लेनेवाला यह चमत्कारिक ब्रांड हैङ्तफेयर ऐंड लवली, जो दुनिया की पहली फेयरनेस क्रीम मानी जाती है और आज 30 साल बाद भी उतनी ही प्रभावी है। कंपनी ने इसका पेटेंट प्राप्त किया और व्यावसायिक उत्पादन के लिए वैश्विक स्तर पर रणनीति तैयार की तो इस कारोबारी रणनीति का केंद्र बना, क्रीम की जनमभूमि भारत। ’70 के दशक में अपने नाम के अनुरूप गोरा और मोहक बनाने का दावा करनेवाली यह क्रीम चूँकि एक नए फॉर्मूले के साथ मार्केट में लॉञ्च हुई थी, इसलिए इसे अपनी पैठ बनाने में ज्यादा दिक्कतें नहीं हुईं। यह वह दौर था, जबकि भारत जैसे विकासशील देशों में फैशन और कृत्रिम तरीके से परफेक्ट लुक पाने जैसी बातें सिर्फ अमीरों के लिए थीं। ऐसे दौर में मात्र 6 हफ्ते यानी 42 दिन में कोई क्रीम गोरा बनाने का दावा करे तो लोगों का चौंकना स्वाभाविक था। किसी ने इसे चमत्कार कहा तो किसी ने इसे अमीरों की सनक, मार्केटिंग गिमिक्स, उत्पाद बेचने का फंडा। बाजार और जीवन में बदलाव आसानी से जगह नहीं बना पाते। सुंदरता निखारने के पारंपरिक नुस्खों पर अमल करनेवाले बहुसंख्यक भारतीय उपभोक्ताओं के लिए फेयर ऐंड लवली वाकई एक अजूबा थी। यहाँ तारीफ करनी होगी एच.एल.एल. प्रबंधकों की, जिन्होंने दाम और विज्ञापन दोनों ही हथियारों का कारगर प्रयोग कर ग्राहकों को इस ब्रांड का मुरीद बना दिया।
चेहरा निखरा, मिली मॉउथ पब्लिसिटी
फेयर ऐंड लवली अपनी लॉञ्चिंग के छठे साल यानी 1984 तक पूरे बाजार पर कब्जा कर नंबर वन बन चुकी थी। इस बात को यूँ भी समझ सकते हैं कि फेयर ऐंड लवली से पहले भारत के कॉस्मेटिक बाजार में फेयरनेस क्रीम जैसा कोई उत्पाद सेगमेंट था ही नहीं। इस क्रीम के आने के बाद बाजार में हलचल हुई और वह उन ग्राहकों को खींचने लगा, जो सिर्फ और सिर्फ गोरा होने और अच्छा दिखने के मिशन में लगे रहते हैं। इसमें उन युवतियों की संख्या सर्वाधिक थी जिन्हें मेक-अप करना, खुद को आकर्षक दिखाना ज्यादा पसंद था या वे सब जो किसी खास मकसद से खुद को तैयार कर रही थीं। क्रीम ने फिल्मी अभिनेत्रियों और बड़े घरों की महिलाओं को भी खूब लुभाया। इन सबसे साँवले या काले होने से परेशान युवाओं में जिज्ञासा जनमी और फेयर ऐंड लवली दौड़ पड़ा। यह क्रीम लगाकर हर कोई गोरा होने निकल पड़ा। कुछ क्रीम का असर हुआ तो शेष काम मनोविज्ञान ने पूरा कर दिया। महिलाओं को महसूस होने लगा कि वे गोरी हो रही हैं, उनका रंग निखर रहा है। प्रचार के सबसे प्रभावी तरीके माउथ पब्लिसिटी ने काम किया तो कंपनी ने भी अपने टी.वी. और अखबारी विज्ञापनों में नई-नई सिने तारिकाओं, मशहूर महिलाओं के मुँह से इस क्रीम की पुष्टि कराने में देरी नहीं की। दिलचस्प बात यह है कि इमामी ने फेयर ऐंड लवली को फीमेल क्रीम बताते हुए पुरुषों के लिए एक्सक्लूसिव फेयरनेस क्रीम लॉञ्च करके एक नई पहल की।
ब्लीचिंग एजेंट और फेयर ऐंड लवली का दावा
ध्यान दें कि फेयर ऐंड लवली लॉञ्च हुई तब से इसके गोरे बनाने के दावों को झुठलानेवाले भी पीछे नहीं हैं। इसके विज्ञापनों की थीम का भी काफी विरोध हुआ है। वृंदा करात जैसी कई महिला नेत्रियों ने इस क्रीम के विज्ञापनों को नस्लीय भेद बढ़ानेवाला बताया है। दूसरी ओर कई त्वचा विशेषज्ञों ने भी इस दावे को गलत बताया है कि कोई क्रीम किसी साँवले या काले इनसान को गोरा बना सकती है। उनका तर्क है कि मिलेनिन पिगमेंट त्वचा के निचले स्तर में बनता है और ऊपर के स्तर में पहुँचता है, जबकि क्रीम सिर्फ ऊपर के स्तर तक ही सीमित रहती है। ऐसे में मिलेनिन के बनने पर नियंत्रण का दावा ठीक नहीं लगता। भारत, बँगलादेश, थाईलैंड समेत कई देशों के डर्मेटोलॉजी के विशेषज्ञ इस बात से असहमत हैं कि बिना कोई ब्लीचिंग एजेंट के कोई क्रीम गोरा बना सकती है। इन ब्लीचिंग एजेंटों में हाइड्रोक्विनोन, स्टीरॉइड, मरक्यूरी साल्ट और कई अन्य हानिकारक केमिकल एजेंट होते हैं। वहीं, फेयर ऐंड लवली का दावा है कि उसके फॉर्मूले में कोई ब्लीचिंग एजेंट नहीं है। इसमें सिर्फ एक्टिव इनग्रेडिएंट हैं, जो त्वचा को निखारते हैं।
गोरेपन की मनोभावना को बाजार में भुनाया
एक सर्वे के मुताबिक, हमारे देश में करीब 20 से 25 फीसदी लोग ऐसे हैं जो अपने जनमजात रंग से खुश नहीं हैं। वे गोरे होना चाहते हैं। बस, फेयर ऐंड लवली ने इन्हीं लोगों की मनोभावना को बाजार में भुनाया है। एशिया और अफ्रीका महाद्वीप में भी कमोबेश ऐसी ही स्थिति है। इसी वजह से 1988 में फेयर ऐंड लवली ब्रांड बाकी दुनिया को निखारने चल पड़ा है। सोची-समझी रणनीति के तहत इसे बाजारों में लॉञ्च किया गया, जहाँ के लोगों की त्वचा साँवली या काली है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि गोरे लोगों की त्वचा काकेशियन प्रकार की होती है और उसमें झुर्रियाँ जल्दी पड़ती हैं, इसलिए उनकी ‘कॉस्मेटिक विश लिस्ट’ में फेयरनेस के बजाय एंटी एजिंग फॉर्मूले ज्यादा होते हैं। गार्नियर, लॉरियल, पॉंड्स जैसी कंपनियों की इस एंटी एजिंग बाजार बहुत अच्छी पकड़ है। भारत में फेयर ऐंड लवली ने बेसिक क्रीम के कई सहयोगी उत्पाद भी बाजार में उतारे हैं, जिससे एक अच्छा फेयरनेस प्रोडक्ट बुके तैयार हो गया है। इनमें आयुर्वेदिक फेयर ऐंड लवली, पुरुषों के लिए अलग क्रीम, मल्टी विटामिन फेयर ऐंड लवली, एंटी मार्क्स फेयर ऐंड लवली, डीप स्किन शेड फेयर ऐंड लवली प्रमुख हैं। इसके अलावा लोशन, मिल्क और साबुन भी हैं। ये सभी उत्पाद भारत की विविधता भरी जलवायु और जीवन-शैली को ध्यान में रखकर तैयार किए गए हैं। वैसे आज 40 से भी ज्यादा देशों में 3 करोड़ से ज्यादा ग्राहकों की पसंद बना फेयर ऐंड लवली ब्रांड अपनी धाक जमाकर सबसे ज्यादा बिकनेवाली फेयरनेस क्रीम बन चुका है। भारत में हिंदुस्तान यूनिलीवर के 65 से ज्यादा उत्पादों में फेयर ऐंड लवली ब्रांड टॉप थ्री में एक है।
कमाई और प्रतिष्ठा समाज के साथ साझा
हमारे देश में फेयरनेस मार्केट का आकार करीब 1 हजार करोड़ रुपए सालाना है। फेयर ऐंड लवली ब्रांड पिछले तीन दशकों से इस मार्केट का सिरमौर बना हुआ है। इमामी, डाबर जैसी कई प्रतियोगी कंपनियों ने भी फेयर ऐंड लवली की राह पर चलते हुए अपने फेयरनेस प्रॉडक्ट लॉञ्च किए हैं, लेकिन कोई भी इस ब्रांड के लिए अब तक चुनौती नहीं बन पाए हैं। मार्केट शेयर की बात करें तो करीब 80 फीसदी फेयरनेस मार्केट इस ब्रांड के कब्जे में है। स्किन केयर प्रॉडक्ट के मार्केट में फेयर ऐंड लवली की पकड़ 40 फीसदी है। बाजार को बिक्री और कमाई में बदलें तो 1 हजार करोड़ के बाजार में से करीब 800 करोड़ इसी ब्रांड के हिस्से में आते हैं। इस क्रीम के मात्र 5 रुपए के पैक में आने के बाद इसकी बिक्री में भारी इजाफा हुआ। दुनिया के 40 देशों में लोकप्रिय है फेयर ऐंड लवली। फेयर ऐंड लवली को प्रमोट करने में इसकी पंच लाइनङ्त‘चाँद का टुकड़ा’ (पुरानी) व ‘छू लो आसमाँ’ (नई) ने अहम भूमिका निभाई है। फेयर ऐंड लवली अपनी कमाई और प्रतिष्ठा को समाज के साथ साझा भी कर रही है। इसके लिए फेयर ऐंड लवली फाउंडेशन का गठन किया गया है, जो उन बच्चियों की मदद करती है, जो जीवन में कुछ बनना चाहती हैं। इसके लिए करीब 1 लाख रुपए सालाना की स्कॉलरशिप भी दी जाती है। इसके अलावा प्रोजेक्ट दिशा के तहत फेयर ऐंड लवली के बैनर तले ऐसे कॅरियर फेयर आयोजित किए जाते हैं, जो बढ़ते बच्चों को सही कॅरियर चुनने में मदद करते हैं।
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