बिस्लेरी – इटली का नाम, भारत की पहचान
बोतलबंद पानी या कहें कि मिनरल वाटर आज भले ही एक सस्ती हकीकत लगती है, लेकिन महज 10 साल पहले यह एक महँगा सौदा था। क्या कभी आपने सोचा था कि भारत जैसे देश में आप पानी खरीदकर पीएँगे? लेकिन, समय और परिस्थितियों की माँग के चलते ऐसा करना जरूरी हो गया है। इसके पीछे कई कारण गिनाए जा सकते हैं, जिनमें सबसे ऊपर रखा जा सकता है मार्केटिंग के कमाल को, जो किसी गंजे आदमी को भी तेल या कंघा बेच सकती है। बहरहाल, हमारे देश में ठीक मोबाइल क्रांति की तरह मिनरल वाटर क्रांति हुई है। दिलचस्प बात है कि इसकी अगुआई की है, हमारे ही अपने एक देशी ब्रांड बिस्लेरी ने और इसके प्रणेता बने हैं करीब 80 साल पुराने पारले ग्रुप की तीसरी पीढ़ी के उद्यमी रमेश चौहान। बिस्लेरी की स्थापना इटली साइनॉर फेलिस बिस्लेरी ने की थी। उन्हीं के नाम पर बना है बिस्लेरी ब्रांड । भारत में ब्रांडेड पानी बेचने का फॉर्मूला सर्वप्रथम फेलिस बिस्लेरी ही लाए थे।
To be sure, the changes are noteworthy. For decades now, Bisleri has been sold in conical bottles — a legacy from the 1960s when the water was sold in glass beer bottles. Although it switched to PET in the 1980s, the shape didn’t change. Now, water variant are sold in a streamlined, round shape, while the ubiquitous blue of the logo has given way to a more international looking aqua green label. The new label helped the company cut costs — by up to Rs 6 crore a year. The earlier shrink label has been replaced with one made of superior biaxial-oriented polypropylene film that can not only take more colors, but costs half of shrink labels.
खाने के लाले, कौन पिए बिस्लेरी का पानी
‘बिस्लेरी’ ब्रांड को जानने के लिए हमें 1960 के उस दौर में लौटना पड़ेगा, जब हमारा देश अनाज की कमी से बेहाल था। पंडित नेहरू के आकस्मिक निधन के बाद लालबहादुर शास्त्री ने देश तो सँभाल लिया, लेकिन देशवासियों की भूख को न सँभाल पाए। उस पर पाकिस्तान ने हमला बोल दिया। यह एक ऐसा संक्रमण काल था, जो देशवासियों को गहरे घावों के साथ कई जरूरी सबक भी दे गया। इसी दौर में देश के उद्योग जगत् में एक बड़ी घटना के रूप में सन् 1961 में चार चौहान भाइयों के पारले समूह का बँटवारा हो गया। इसके साथ ग्रुप के एक संस्थापक जयंतीलाल चौहान के हिस्से में आया समूह का सॉफ्ट ड्रिंक का कारोबार। इस समय तक पारले ग्रुप बिस्किट के अलावा रिमझिम, किस्मत और पारले कोला ब्रांड नेम से सॉफ्ट ड्रिंक बना रहा था। बँटवारे के बाद सॉफ्ट ड्रिंक के इस कारोबार को उन बुरे हालात में चलाना एक बड़ी चुनौती थी, क्योंकि देशवासियों के पास दो वक्त का खाना नहीं था तो कोई उन्हें महँगा सॉफ्ट ड्रिंक पीने को कैसे कहता, लेकिन; चौहान परिवार डटा रहा। इसी दौरान पारिवारिक कारोबार में जुड़े जयंतीलाल के तीन बेटे मधुकर, रमेश और प्रकाश । इनमें से रमेश चौहान बहुत मेधावी और अति-शिक्षित थे। उन्होंने अमेरिका के मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से इंजीनियरिंग व बिजनेस मैनेजमेंट की पढ़ाई की थी। 1964 में एक हादसे में मधुकर के निधन के बाद कारोबार की पूरी जिम्मेदारी रमेश चौहान के कंधों पर आ गई और बस यहीं से कायाकल्प शुरू हुआ। सबसे पहले उन्होंने यह विश्लेषण व निष्कर्ष निकाला कि बाजार की माँग क्या है और उनके प्रोडक्ट्स पोर्टफोलियो व इसके प्रमोशन में क्या कमी है? जवाब मिला कि उन्हें सॉफ्ट ड्रिंक में ज्यादा वैराइटी के साथ सोडा भी लॉञ्च करना चाहिए। संयोग से उस समय देश में इटली की कंपनी बिस्लेरी लिमिटेड ने संपन्न वर्ग के लिए काँच की बोतल में मिनरल वाटर बेच रही थी। लेकिन, देश के सामने भूख और भय हो तो पानी खरीदकर कौन पीए!
डूबती बिस्लेरी को मिला युवा कंधों का मजबूत सहारा
बिस्लेरी अपना कारोबार समेटने की तैयारी में थी और रमेश चौहान कारोबार बढ़ाने जा रहे थे। 1969 में चौहान ने बिस्लेरी को इस मकसद से खरीद लिया कि इस ब्रांड को वे सोडा ब्रांड में तब्दील कर अपने पोर्टफोलियो को मजबूत बना लेंगे। इस समय तक बिस्लेरी के देश भर में मात्र 5 स्टोर थेङ्तएक कोलकाता में और 4 मुंबई में। युवा रमेश चौहान ने वही किया जो सोचा था, लेकिन साथ ही बिस्लेरी के बोतलबंद पानीवाले दो ब्रांड ‘बबली’ और ‘स्टिल’ को भी बनाना बंद नहीं किया। वे कहते हैं कि हमने कई साल तक सोडा और पानी दोनों बिस्लेरी ब्रांड के नाम से बेचा। इस समय तक पारले बिस्लेरी समूह की इस शाखा ने अपने प्रोडक्ट पोर्टफोलियो में लिम्का, थम्स अप, माजा, गोल्ड स्पॉट और सिट्रा जैसे सॉफ्ट ड्रिंक जोड़कर एक बेहतरीन प्रॉडक्ट्स पोर्टफोलियो बना लिया। 1976 तक आते-आते पारले बिस्लेरी ने सॉफ्ट ड्रिंक के कारोबार में अच्छी पकड़ बना ली थी। इस समय तक लगभग सभी तरह के सॉफ्ट ड्रिंक काँच की बोतल में आते थे और जिसे पीने के बाद वापस करना होता था। यह एक महँगा सौदा था; लेकिन किसी ने सोचा ही नहीं था कि प्लास्टिक इसका विकल्प बन सकता है। 1985 के दौरान पॉली इथलीन टेरीफ्टलेट या पी.ई.टी./पेट नाम के एक प्लास्टिक मैटेरियल के आने से इस उद्योग में क्रांति के साथ नई जान आ गई। यह हलका, मजबूत और रीसाइकल किया जा सकनेवाला ऐसा पैकेजिंग मैटेरियल था, जिसे किसी भी आकार में ढाला जा सकता था। पैकेजिंग की समस्या हल हुई तो दाम भी कम होना शुरू हुए। इसी दौरान भारतीय बाजार में आर्थिक उदारीकरण का दौर आया और देश के बाजार दुनिया के लिए खुल गए।
आर्थिक उदारीकरण बना शुभ संयोग
ये पारले बिस्लेरी के लिए अनुकूल साबित हुए और कंपनी ने मार्केट पर लगभग कब्जा कर लिया। हालाँकि सॉफ्ट ड्रिंक की तुलना में पानी बेचना अभी भी एक चुनौती थी, क्योंकि हमारे देश में पानी को एक कमोडिटी कभी समझा ही नहीं गया था। शायद यही वजह है कि हमारे यहाँ पानी का भारी दुरुपयोग भी होता है। एक ओर जहाँ लाखों-करोड़ों गैलन पानी बेकार बह जाता है वहीं एक-एक बूँद पानी के लिए लोग खून भी बहा देते हैं। बहरहाल, ’90 के दशक में पारले बिस्लेरी के बिस्लेरी ब्रांड की बोतलबंद पानी के बाजार में धाक थी, लेकिन इस मुनाफेवाले बाजार में नई कंपनियों ने कदम रखना शुरू कर दिया था। वर्ष 1992 में बोतलबंद पानी की खपत 95 मिलियन लीटर के स्तर पर थी और कुल कारोबार करीब 3 अरब रुपए का था। इस दौर में 1971 में बाजार में आए बिस्लेरी ब्रांड की हिस्सेदारी 70 प्रतिशत थी, लेकिन 1993 में इस बाजार में अच्छे मुनाफे को देखते हुए अमूमन हर तीसरे महीने एक नया ब्रांड लॉञ्च हो रहा था। हालाँकि वितरण की समस्या के चलते कई पुराने ब्रांड बाजार में आए और गुम भी हो गए। बिस्लेरी की बाजार हिस्सेदारी भी 70 प्रतिशत से उच्चतम स्तर को छूने के बाद लुढ़कने लगी। इसी दौरान एक बड़े व रणनीतिक फैसले के तहत रमेश चौहान ने अपना सॉफ्ट ड्रिंक कारोबार, अमेरिका की दिग्गज कंपनी कोकाकोला को बेचकर पूरा ध्यान पानी बेचने यानी बिस्लेरी ब्रांड पर लगा दिया। इस समय तक बिस्लेरी ने अपना ब्रांड प्रमोशन इतनी चतुराई से किया कि यह ब्रांड शुद्ध मिनरल वाटर का प्रतीक बन गया। हालाँकि इसे मिनरल वाटर कहना वैज्ञानिक व तकनीकी रूप से सही नहीं माना गया। इसी दौर में बिस्लेरी की सफलता से प्रेरित कई नए ब्रांड भी शुद्ध पानी के दावे के साथ खुले बाजार में कूद पड़े, इसलिए बिस्लेरी को ’90 के दशक के आखिरी कुछ सालों में ‘प्योर एंड सेफ’ (शुद्ध व सुरक्षित) के सूत्र वाक्य से प्रचार अभियान का सहारा लेना पड़ा। इस दौर में बिस्लेरी ने एक बड़े फैसले के रूप में 5 रुपए में आधा लीटर पैक भी बेचा।
बोतलबंद पानी के नाम पर छिड़ा ब्रांड युद्ध
वर्ष 2000 की शुरुआत में बिस्लेरी को बड़ा झटका लगा जब पेप्सी, कोका-कोला और नेस्ले जैसी कंपनियों ने बिस्लेरी के किले में सेंध लगा दी। इसके असर को कम करने के लिए बिस्लेरी ने अपने प्रचार अभियान को कुछ हलका-फुलका बनाया। दूसरे ब्रांडों से मिल रही तगड़ी टक्कर के बावजूद बिस्लेरी ने वर्ष 2000 में 4 अरब रुपए के कारोबार को वर्ष 2003 तक 10 अरब रुपए पहुँचाने का लक्ष्य रखा। देश में बोतलबंद पानी के लगातार नए ब्रांडों के आने के बारे में विश्लेषकों का मत है कि आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया के चलते देश में लोगों की आय बढ़ रही थी। ऐसे में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ रही थी। इसी के असर के चलते ब्रांडेड मिनरल वाटर, जो 1993 में सिर्फ साठ बड़े शहरों में ही उपलब्ध था उसका बाजार चार वर्षों में 250 शहरों तक फैल गया। 1998 में बिस्लेरी की बाजार हिस्सेदारी 60 फीसदी थी और शेष बाजार पर कब्जे के लिए सैकड़ों छोटे-बड़े ब्रांडों में घमासान चल रहा था।
इस समय देश में बोतलबंद पानी की सालाना खपत 424 मिलियन लीटर तक पहुँच गई थी और बाजार 4 अरब रुपए का हो गया था। साथ ही साथ बाजार में उपलब्ध ब्रांडों की संख्या भी 200 तक पहुँच गई। वर्ष 2000 आते-आते बोतलबंद पानी का कारोबार 7 अरब के स्तर को पार कर गया और पेप्सी एक्वाफिना, कोका-कोला किनले और नेस्ले प्योर लाइफ बाजार में उतर चुके थे। इसके अलावा बोतलबंद पानी का यह बाजार भी प्रीमियम, पॉपुलर और बल्क सेगमेंट्स में बँट गया। जहाँ पॉपुलर सेगमेंट में बिस्लेरी, बैली, एक्वाफिना और किनले प्रमुख ब्रांड थे, वहीं प्रीमियम सेगमेंट पर डैनॉन इवियन, नेस्ले पेरियर और सान पेलाग्रिनो काबिज थे। इसी प्रकार पाँच, दस और बीस लीटर के पैकवाले बल्क सेगमेंट में बिस्लेरी, एक्वाफिना और किनले अगुवा ब्रांड थे। वर्ष 2001 में बोतलबंद पानी का बाजार 10 अरब रुपए के स्तर तक पहुँच गया और इसमें सालाना 40 फीसदी का उछाल आ रहा था। इस वर्ष मार्च में बिस्लेरी की हिस्सेदारी 51 फीसदी थी, वहीं किनले 10 प्रतिशत और एक्वाफिना 4 प्रतिशत बाजार पर काबिज थे।
रंग लाई पैकेजिंग रणनीति, ‘प्योर ऐंड सेफ’ बना सेफ गेम
इसी दौर में दूसरे ब्रांडों से मिल रही तगड़ी टक्कर को देखते हुए बिस्लेरी ने अलग-अलग साइजों के आकर्षक पैक बाजार में पेश किए। इसी वर्ष कंपनी ने 1.2 लीटर का पैक बाजार में उतारा और पुराने प्रचलित एक लीटर पैक को बंद करने का निर्णय लिया। इसके पीछे प्रमुख कारण रिसाव और ढक्कन खराब होने से बोतल के अशुद्ध हो जाने का था, लेकिन चूँकि 1.2 लीटर की नई बोतल अपेक्षाकृत मजबूत थी, अतः इन समस्याओं से निजात मिल गई। जहाँ एक लीटर के एक कैरट पर कंपनी को साढ़े चौवालीस रुपए का मुनाफा हो रहा था, वहीं 1.2 लीटर पर यह बढ़कर करीब 60 रुपए हो गया। प्रति कैरट मिलनेवाले साढ़े चौदह रुपए के अतिरिक्त मुनाफे को कंपनी ने प्रचार पर खर्च करने का निर्णय लिया। इसके अलावा कंपनी ने भीड़ भरे आयोजनों को लक्ष्य कर तीन सौ मि.ली. का कप भी पेश किया। इसी प्रकार सभी ब्रांडों की बोतलों के गोल होने के कारण ब्रांड प्रतिष्ठा पर पड़ रहे असर को देखते हुए कंपनी ने ना सिर्फ चौकोर बोतल पेश की, बल्कि डिजाइन को पेटेंट भी करा लिया। इसके बाद बिस्लेरी ने ‘प्योर ऐंड सेफ’ विज्ञापन अभियान को बंद कर ‘प्ले सेफ’ विज्ञापन शुरू किया। ब्रांड से युवाओं और मौजमस्ती को जोड़ने के लिए ‘फन एलीमेंट’ शामिल किया गया।
हाजिर है हिमालय का औषधीय पानी
आज बिस्लेरी अपने 2,000 से ज्यादा ट्रकों व 3,500 डिस्ट्रीब्यूटर्स के जरिए सवा तीन लाख रिटेल ऑउटलेट्स तक पहुँच रहा है। करीब 54 प्लांट के दम पर 1.5 करोड़ लीटर पानी रोज बेचनेवाली बिस्लेरी देश-दुनिया में छा गई। हालाँकि देश के सबसे प्रतिष्ठित टाटा समूह के माउंट एवरेस्ट कंपनी के हिमालय ब्रांड को खरीदने के साथ ही बिस्लेरी की चुनौती बढ़ गई है, लेकिन चौहान ने इसका जवाब उत्तराखंड के रुद्रपुर में नया प्लांट लगाकर दिया है। कंपनी इसे अपने विदेशी ग्राहकों को संतुष्ट करने की एक पहल भी बता रही है जो हिमालय के ग्लेशियरों से निकला जड़ी-बूटियों के सत्ववाला माउंटेन वाटर पीना चाहते हैं। माना जा रहा है कि बिस्लेरी जल्दी ही विटामिन वाटर और फ्लैवर्ड वाटर भी लॉञ्च करेगी। नई योजनाओं के साथ बिस्लेरी जहाँ बाजार को भुनाने में लगी है, वहीं अपने कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी को जयंती चौहान ट्रस्ट के जरिए पूरा कर रही है। यह ट्रस्ट देश के कई राज्यों में भूगर्भीय जल को संरक्षित रखने, रेन वाटर हार्वेस्टिंग और चैक डेम निर्माण जैसे कामों को हाथ में लेकर प्रकृति को उसका दिया लौटा रहा है।
जो हिमालय के ग्लेशियरों से निकला जड़ी-बूटियों के सत्ववाला माउंटेन वाटर पीना चाहते हैं। माना जा रहा है कि बिस्लेरी जल्दी ही विटामिन वाटर और फ्लैवर्ड वाटर भी लॉञ्च करेगी। नई योजनाओं के साथ बिस्लेरी जहाँ बाजार को भुनाने में लगी है, वहीं अपने कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी को जयंती चौहान ट्रस्ट के जरिए पूरा कर रही है। यह ट्रस्ट देश के कई राज्यों में भूगर्भीय जल को संरक्षित रखने, रेन वाटर हार्वेस्टिंग और चैक डेम निर्माण जैसे कामों को हाथ में लेकर प्रकृति को उसका दिया लौटा रहा है।
नई पीढ़ी भी मैदान में
खुद के लिए 70 बरस रिटायरमेंट उम्र माननेवाले बिस्लेरी के मालिक रमेश चौहान अब कारोबार नई पीढ़ी को सौंपने लगे हैं। पिछले 50 साल से सॉफ्ट ड्रिंक-मिनरल वाटर उद्योग में सक्रिय चौहान दुनिया के उन चुनिंदा उद्यमियों में हैं, जिन्होंने इतना लंबा समय किसी ब्रांड को बनाने और बचाए रखने में खर्च किया है। हाल ही में बिस्लेरी के मालिक रमेश चौहान की इकलौती संतान जयंती चौहान अपने पिता के कारोबार से जुड़ गई हैं। फैशन स्टाइलिंग, मर्चेडाइजिंग, मेकअप आर्ट और फोटोग्राफी के गुर सीखनेवाली 24 साल की जयंती बतौर निदेशक पारले बिस्लेरी में शामिल हो गई हैं। जयंती के इस फैसले ने उन सभी कयासों पर विराम लगा दिया है, जिनमें कहा जा रहा था कि बेटी के कारोबार में दिलचस्पी न रखने की वजह से रमेश चौहान देश का नंबर एक पैकेज्ड वाटर ब्रांड बिस्लेरी बेच देंगे। गुप डैनॉन और नेस्ले समेत कई कंपनियाँ बिस्लेरी को खरीदना चाहती थीं। जयंती कहती हैं कि पारिवारिक कारोबार सँभालने का फैसला करने के लिए मैंने वक्त लिया, पर मैं यहाँ अपनी मरजी से हूँ।