सात राजकुमारों के लिए सात वधुएँ
एक बारात लंढौर बाजार रोड के साथ-साथ अपने रास्ते पर घूम रही थी। सबसे पहले ढोल, तुरही और झाँझ की गूँज के साथ बैंड आया, उसके बाद सड़क पर गाते व नाचते हुए दूल्हे के मित्र और उसके बाद सफेद टट्टू पर बैठा दूल्हा स्वयं आया, जो विवाह की पोशाक में बहुत ही सजीला और सुंदर लग रहा था। वे वधू के घर, जहाँ समारोह होना था और साक्षी निराश थी कि वह वधू को नहीं देख सकी, क्योंकि वह जानना चाहती थी कि वह कैसी दिखती थी और उसने क्या पहना था!
शशि, अनिल, मधु और विजय जावेद खान की दुकान की सीढि़यों पर बैठे हुए बारात का गुजरना देख रहे थे। जल्दी ही कमल भी उनमें शामिल हो गया, जो वैवाहिक अतिथियों के पीछे टहलता हुआ यहाँ आया था।
‘वहाँ बाहर ठंड में क्यों बैठे हो?’ अपनी मंद रोशनीवाली दुकान के अंदर से जावेद खान ने कहा, ‘अंदर आ जाओ और आग के पास बैठो। मैं तुम्हें एक सबसे असाधारण शादी का एक किस्सा सुनाऊँगा, जो मेरी वादी में कई साल पहले हुई थी।’
बहुत-बहुत पहले एक राजा था, जिसके सात पुत्र थे। वे सबके सब बहादुर, सुंदर और चतुर थे। वृद्ध राजा सब को बराबर प्यार करता था और राजकुमार एक सी पोशाक पहनते थे तथा उन्हें समान भत्ते मिलते थे। जब वे बड़े हुए तो उन्हें अलग-अलग महल दिए गए, लेकिन महल एक जैसे बनाए गए थे और उनकी साज-सज्जा भी एक जैसी की गई थी और अगर तुमने एक महल देख लिया था तो समझो, सारे महल देख लिये थे।
जब राजकुमारों की विवाह योग्य उम्र हुई तो राजा ने एक समान सुंदरता और प्रतिभावाली सात वधुएँ खोजने के लिए सारे देश में अपने राजदूत भेजे। राजा के संदेश वाहकों ने हर जगह की यात्रा की, कई राजकुमारियाँ देखीं; लेकिन सात उपयुक्त वधुएँ नहीं ढूँढ़ सके। वे लौटकर राजा के पास आए और अपनी विफलता के बारे में राजा को बताया।
अब तो राजा इतना निराश और दुःखी हो गया कि उसके मंत्री ने फैसला किया कि इस समस्या को हल करने के लिए कुछ-न-कुछ तो करना ही पड़ेगा। उसने कहा, ‘महाराज, इतने मायूस न हों, निश्चय ही आपके सात पुत्रों जैसी मुकम्मल सात वधुएँ खोजना असंभव है। हमें किस्मत पर भरोसा करना चाहिए और फिर शायद हमें सही वधुएँ मिल जाएँगी।’
मंत्री ने एक योजना के बारे में सोचा था और राजकुमारों को इसके लिए सहमत कर लिया था। उनको किले की सबसे ऊँची बुर्ज पर ले जाया गया, जहाँ से पूरे शहर के साथ ही आस-पास का ग्रामीण क्षेत्र भी दिखाई देता था। राजकुमारों के सामने सात धनुष और सात तीर रखे गए थे और उनसे जिस दिशा में वे चाहें, उस दिशा में तीर छोड़ने के लिए कहा गया। प्रत्येक राजकुमार ने उस लड़की से विवाह करने की सहमति दी थी, जिसके घर पर उसका तीर जाकर गिरेगा—चाहे वह किसी राजकुमार की लड़की हो या किसी किसान की।
राजकुमारों ने धनुष उठाए और अलग-अलग दिशाओं में तीर छोड़े। सबसे छोटे राजकुमार को छोड़कर सभी राजकुमारों के तीर प्रसिद्ध और अत्यंत प्रतिष्ठित परिवारों के घरों पर जाकर गिरे थे। लेकिन सबसे छोटे राजकुमार द्वारा छोड़ा गया तीर शहर की सीमा से बाहर चला गया था और दृष्टि से ओझल हो गया था।
नौकर तीर की तलाश में सभी दिशाओं में दौड़ पड़े और एक लंबी खोज के बाद उसे एक बहुत बड़े बरगद के पेड़ की शाखा में गड़ा हुआ पाया गया, जिसके ऊपर एक बंदरिया बैठी थी।
‘एक बंदरिया!’ बच्चों ने आश्चर्य से कहा।
‘क्या राजकुमार ने बंदरिया से शादी की?’ अनिल ने पूछा।
जावेद खान ने जवाब नहीं दिया, लेकिन हुक्के का एक लंबा ताजगी देनेवाला कश खींचा और अपने श्रोताओं के ध्यान केंद्रण के दबने का इंतजार करने लगा।
(जावेद खान ने किस्सा जारी रखते हुए कहा) राजा को बहुत पछतावा हुआ, जब उसे पता चला कि उसके सबसे छोटे राजकुमार के तीर ने ऐसा दुर्भाग्यशाली निशाना लगाया है। राजा और उसके दरबारी एवं मंत्रियों ने एक त्वरित बैठक की और फैसला किया कि सबसे छोटे राजकुमार को तीर के साथ एक और अवसर दिया जाना चाहिए। लेकिन हर किसी को चकित करते हुए राजकुमार ने दूसरा अवसर लेने से इनकार कर दिया।
‘मैं शिकायत नहीं करता।’ उसने कहा, ‘मेरे भाइयों को अच्छी और सुंदर पत्नियाँ मिली हैं और यह उनका सौभाग्य है। लेकिन मुझे वह कसम तोड़ने को मत कहो, जो मैंने तीर चलाने से पहले ली थी। मैं जानता हूँ कि मैं बंदरिया से विवाह नहीं कर सकता; लेकिन चूँकि मैं नहीं कर सकता, इसलिए मैं किसी से भी विवाह नहीं करूँगा। इसकी बजाय मैं बंदरिया को घर ले आऊँगा और एक पालतू की तरह से उसकी देखभाल करूँगा।’
और सबसे छोटा राजकुमार शहर से बाहर गया और बंदरिया को घर ले आया।
छह भाग्यशाली राजकुमारों के खूब धूमधाम से विवाह हुए। शहर में प्रकाश और आतिशबाजी से जश्न मनाया और सड़कों पर संगीत एवं नृत्य हुए। लोगों ने अपने घरों को आम और केले के पत्तों से सजाया था। पूरे शहर में खुशी का माहौल था, सिवाय सबसे छोटे राजकुमार के घर के, जो बहुत अकेला और दुःखी था। उसने अपनी बंदरिया के गले में हीरे का एक पट्टा डाला था और उसे मखमल की गद्दीवाली एक कुरसी पर बिठाया था।
राजकुमार ने कहा, ‘ऐ बंदरिया, आज इस खुशी के दिन तुम भी उतनी ही अकेली हो, जितना मैं हूँ। लेकिन मैं यहाँ तुम्हारे ठहराव को खुशियों से भर दूँगा! क्या तुम्हें भूख लगी है?’ और उसने स्वादिष्ट आमों का एक कटोरा उसके सामने रख दिया तथा उसे उन्हें खाने के लिए राजी कर लिया। वह बंदरिया से बातें करने लगा और अधिकतर समय उसके साथ बिताने लगा। कुछ लोगों ने उसे मूर्ख या जिद्दी कहा; दूसरे सोचते थे कि वह थोड़ा सा पागल है।
राजा ने अपने मंत्रियों और बेटों के साथ स्थिति पर चर्चा की और राजकुमार को फिर से होश में लाने और किसी उपयुक्त परिवार में उसका विवाह करने के लिए कोई-न-कोईर् रास्ता निकालने का निर्णय किया। लेकिन सबसे छोटे राजकुमार ने अपने पिता, भाइयों और मित्रों की सलाह व मनुहारों को सुनने से इनकार कर दिया।
‘मैंने वचन दिया था,’ उसने उत्तर दिया, ‘और मेरा वचन पहाड़ की तरह अटल है।’
महीनों गुजर गए, पर राजकुमार ने अपना मन नहीं बदला। इसके बजाय ऐसा लगने लगा कि उसका बंदरिया के प्रति लगाव अधिक बढ़ गया था और उसे अकसर महल के बागों में बंदरिया के साथ टहलते हुए देखा जाता था।
अंत में राजा ने सातों राजकुमारों की एक बैठक बुलाई और कहा, ‘मेरे बेटो, मैंने तुम्हें जीवन में खुशी-खुशी व्यवस्थित होते देखा है। यहाँ तक कि तुम भी, मेरे सबसे छोटे बेटे, अपनी अजीब साथी के साथ खुश दिखाई देते हो। एक पिता की खुशी अपने बेटे-बेटियों की खुशी में होती है। इसलिए मैं अपनी बहुओं से मिलना चाहता हूँ और उनको उपहार देना चाहता हूँ।’
सबसे बड़े बेटे ने तुरंत अपने पिता को अपने घर भोजन पर निमंत्रित कर दिया और दूसरों ने भी निमंत्रण को दुहरा दिया। राजा ने सबसे छोटे बेटे के निमंत्रण सहित सबके निमंत्रणों को स्वीकार कर लिया। स्वागत बहुत भव्य हुए और राजा ने अपनी वधुओं को कीमती जवाहरात एवं महँगी पोशाकें उपहार में दीं। अंत में राजा का स्वागत करने की सबसे छोटे बेटे की बारी आई।
सबसे छोटा राजकुमार बहुत परेशान हुआ। वह उस घर में अपने पिता को कैसे आमंत्रित कर सकता था, जिसमें वह एक बंदरिया के साथ रहता था? वह जानता था कि उसकी बंदरिया इलाके की अनेक बड़ी-बड़ी महिलाओं से अधिक सौम्य और प्रिय है और वह इस बात पर दृढ़ था कि वह उसे छुपाएगा नहीं, जैसे वह कोई शरमिंदा होने वाली चीज हो।
बाग में उसके साथ टहलते हुए उसने कहा, ‘मुझे अब क्या करना चाहिए, मेरी दोस्त? काश, परेशानी की घड़ी में मुझे आराम, राहत देने के लिए तुम्हारे पास जुबान होती। मेरे सभी भाइयों ने मेरे पिता को अपने घर और अपनी पत्नियाँ दिखाई हैं। मैं जब तुम्हें उनके सामने प्रस्तुत करूँगा तो सब मेरा मजाक उड़ाएँगे।’
जब भी राजकुमार ने उससे कुछ कहा था, बंदरिया हमेशा एक मूक और सहानुभूतिपूर्ण श्रोता रही थी; लेकिन अब उसने देखा कि वह अपने पंजों से उसके लिए कोई संकेत कर रही थी। उस पर झुकते हुए राजकुमार ने देखा कि उसके एक हाथ में मिट्टी के बरतन का एक टुकड़ा था और वह उससे उसे लेने के लिए कह रही थी। राजकुमार ने उससे वह टूटा हुआ टुकड़ा ले लिया। उस पर सुंदर जनाना हस्तलेख में ये शब्द लिखे हुए थे—
‘चिंता न करें, राजकुमार। उस स्थान पर जाएँ, जहाँ आपने मुझे पाया था। मिट्टी के बरतन के इस टुकड़े को बरगद के पेड़ के खोखले तने में फेंक देना और किसी जवाब की प्रतीक्षा करना।’
राजकुमार पहले तो झिझका, लेकिन बाद में सोचा कि अपनी बंदरिया की बात मानने से उसकी समस्या और ज्यादा तो बिगड़ने वाली नहीं है। इसलिए, मिट्टी के बरतन का टूटा हुआ टुकड़ा लेकर वह शहर के बाहर गया और उस बरगद के पेड़ के पास पहुँचा।
वह एक बहुत पुराना, सैकड़ों साल पुराना बरगद का पेड़ था। उसकी शाखाएँ और जड़ें एक विस्तृत गोल घेरे में फैली हुई थीं और उसके पत्ते छोटे-छोटे कुंजों का निर्माण कर रहे थे। उसका तना हालाँकि अंदर से खोखला था, लेकिन बहुत बड़ा और मोटा था। उसके पास जाकर राजकुमार ने मिट्टी के बरतन का वह टुकड़ा पेड़ के खोखले तने में फेंक दिया और यह देखने के लिए इंतजार करने लगा कि क्या होता है!
उसे ज्यादा देर तक इंतजार नहीं करना पड़ा। कुछ ही पलों के बाद हरे रंग की पोशाक पहने एक सुंदर लड़की तने से निकलकर बाहर आई और राजकुमार से अपने पीछे आने के लिए कहा। उसने राजकुमार को बताया कि उसकी राजकुमारी, परियों की रानी, उससे व्यक्तिगत रूप में मिलना चाहती थी।
राजकुमार पेड़ पर चढ़ा और खोखले तने में प्रवेश कर गया और थोड़ी देर अँधेरे में टटोलकर चलने के बाद अचानक वह आँखें चौंधिया देनेवाले आश्चर्यजनक बाग में पहुँचा, जिसके अंत में एक आकर्षक महल खड़ा हुआ था। ऊँचे-ऊँचे सूरजमुखी के फूलों से बाग की सीमा बनी हुई थी। फूलों के बीच में एक मधुर सुगंधवाली जलधारा बह रही थी और जलधारा के तले में कंकरों की जगह माणिक, हीरे व नीलम थे। यहाँ तक कि इस दुनिया में फैला प्रकाश भी उसकी अपनी दुनिया से ज्यादा गरम और मृदु था। उसे सोने की सीढि़यों से चाँदी के एक फव्वारे के पीछे और इंद्रधनुषी सीपियों से बने महल के द्वारों में से ले जाया गया। लेकिन जिस कमरे में उसे ले जाया गया था, उस कमरे का वैभव परियों की उस राजकुमारी के अतुल्य सौंदर्य के आगे फीका पड़ गया था, जो उसके सामने खड़ी थी।
‘हाँ, राजकुमार, आपका संदेश मैं जानती हूँ।’ उसने कहा, ‘चिंतित न हों, लेकिन घर जाएँ और कल शाम को अपने पिता महाराज तथा अन्य शाही मेहमानों के स्वागत की तैयारी करें। मेरे सेवक सबकुछ सँभाल लेंगे।’
अगली सुबह जब राजकुमार अपने महल में जागा तो एक अद्भुत नजारा उसकी आँखों के सामने था। उसका महल जैसे एक नए जीवन से भर गया था। उसके बाग आम, पपीता, अनार और आड़ू के फलदार पेड़ों से भरे हुए थे। पेड़ों की छाया में स्टॉलें लगी थीं, जिन पर फल, मिठाइयाँ, इत्र और शरबत उपलब्ध थे। बच्चे लॉन में खेल रहे थे और पुरुष व स्त्रियाँ संगीत सुन रहे थे।
राजकुमार ने जो देखा, उससे वह हक्का-बक्का रह गया था और तब तो वह और भी ज्यादा अचंभित हुआ, जब उसने अपने महल में प्रवेश किया और वहाँ भरपूर शोर व गतिविधियाँ पाईं। स्वादिष्ट भोजनों से मेजें लदी हुई थीं। छतों से बड़े-बड़े झाड़-फानूस लटक रहे थे। फूलों के बंदनवारों की सुगंध ने पूरे महल को महका रखा था।
तभी एक सेवक दौड़ता हुआ आया और घोषणा की कि राजा अपने दरबारियों के साथ पधार रहे हैं। राजकुमार उनकी अगवानी के लिए लपका। वह उन्हें स्वागत कक्ष में लेकर आया, जिसे सुंदर ढंग से सजाया गया था। वहाँ भोजन परोसा गया। उसके बाद हर किसी ने राजकुमार द्वारा चुनी गई साथी को देखने पर जोर दिया। हर किसी ने यह सोचा था कि इतने शानदार भोज के बाद बंदरिया को देखना एक मजेदार मनोरंजन होगा।
राजकुमार उनके अनुरोध को टाल नहीं सका और उदास मन से बंदरिया की तलाश में अपने कमरे में गया। उसे उस उपहास से डर लग रहा था, जिसका उसे सामना करना था। वह जानता था कि यह उसकी अपनी कसम को न तोड़ने की जिद का इलाज करने के प्रयासों का एक तरीका है।
राजकुमार ने अपने कमरे का दरवाजा खोला और प्रकाश की चौंध से लगभग अंधा ही हो गया था। कमरे के बीचोबीच सिंहासन पर वही राजकुमारी बैठी थी, जिससे वह बरगद के पेड़ के अंदर मिला था।
‘हाँ, आइए राजकुमार।’ राजकुमारी ने कहा, ‘क्योंकि मैंने आपको पिछली बार अपने महल में देखा था, तब से मैं आपके सिवाय कुछ भी नहीं सोच सकी हूँ। मैंने बंदरिया को दूर भेज दिया है और आपको अपने हाथ की पेशकश करने के लिए आई हूँ।’
यह सुनकर कि उसकी पालतू बंदरिया चली गई है, उसके आँसू फूट पड़े और उसने गुस्से में कहा, ‘यह तुमने क्या कर दिया है? तुम्हारी सुंदरता मेरी मित्र की क्षतिपूर्ति नहीं कर पाएगी।’
तब राजकुमारी ने मुसकराते हुए कहा, ‘अगर मेरा सौंदर्य आपको प्रभावित नहीं करता है तो मेरे आभार के कारण मेरा हाथ थाम लीजिए। देखिए, मैंने आपके पिताजी और भाइयों के लिए इस दावत को तैयार करने में कितना परिश्रम किया है! मेरे पति बन जाइए। दुनिया की सारी दौलत और खुशियाँ आपके कदमों में होंगी।’
राजकुमार क्रोधित था, ‘मैंने इस सबके लिए तुमसे कभी नहीं कहा था और न ही मैं यह जानता हूँ कि मुझे मेरी बंदरिया से महरूम करने के पीछे क्या चाल है! उसे मेरे पास वापस लाओ, मैं तुम्हारा दास बन जाऊँगा।’
फिर राजकुमारी ने सिंहासन छोड़ दिया और राजकुमार का हाथ पकड़कर बड़े प्रेम और सम्मान के साथ उससे बोली, ‘आप मुझ में अपनी मित्र और साथी को देखिए, मैंने आपके विश्वास और निष्ठा की परीक्षा लेने के लिए ही बंदरिया का रूप रखा था। देखिए, मेरी बंदरिया की खाल उस कोने में पड़ी है।’
राजकुमार ने देखा कि कमरे के एक कोने में बंदरिया की खाल पड़ी हुई थी।
वह और राजकुमारी दोनों सिंहासन पर बैठे और जब राजकुमारी ने कहा, ‘उठो, उठो, उठो।’ तभी सिंहासन हवा में ऊपर उठा और तैरता हुआ उस हॉल में पहुँचा, जहाँ अतिथि एकत्र हुए थे। राजकुमार ने राजकुमारी को अपने पिता के सामने प्रस्तुत किया। तुम राजा और अतिथियों के आश्चर्य का अनुमान लगा सकते हो, जो वहाँ मेजबान के रूप में एक बंदरिया को देखने के लिए आए थे। राजा ने अपनी नई पुत्रवधू को अनेक उपहार दिए और जल्दी ही पूरे इलाके में लोग राजकुमार और उसकी सुंदर रानी की प्रशंसा करने लगे।
लेकिन ऐसे शानदार लोगों की खुशी का वर्णन करनेवाला मैं कौन होता हूँ?